किसी गांव में एक पुजारी अपने बेटे के साथ रहता था।
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पुजारी हर रोज ठाकुर जी और किशोरी जी की सेवा मन्दिर में बड़ी श्रद्धा भाव से किया करता था।
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उसका बेटा भी धोती कुर्ता डालकर सिर पर छोटी सी चोटी करके पुजारी जी के पास उनको सेवा करते देखता था।
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एक दिन वह बोला बाबा आप अकेले ही सेवा करते हो मुझे भी सेवा करनी है..
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परन्तु पुजारी जी बोले बेटा अभी तुम बहुत छोटे हो... परन्तु वह जिद पकड़ कर बैठ गया।
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पुजारी जी आखिर उसकी हठ के आगे झुक कर बोले अच्छा बेटा तुम ठाकुर जी की मुरली की सेवा किया करो...
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इसको रोज गंगाजल से स्नान कराकर इत्र लगाकर साफ किया करो।
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अब तो वह बालक बहुत खुशी से मुरली की सेवा करने लगा।
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इतनी लगन से मुरली की सेवा करते देखकर हर भक्त बहुत प्रसन्न होता तो ऐसे ही मुरली की सेवा करने से उसका नाम "मुरली" ही पड़ गया।
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अब तो पुजारी ठाकुर और ठकुरानी की सेवा करते और मुरली ठाकुर जी की मुरली की।
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ऐसे ही समय बहुत अच्छे से बीत रहा था कि एक दिन पुजारी जी बीमार पड़ गए.. मन्दिर के रखरखाव और ठाकुर जी की सेवा में बहुत ही मुश्किल आने लगी।
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अब उस पुजारी की जगह मन्दिर में नए पुजारी को रखा गया...
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वह पुजारी बहुत ही घमण्डी था, वह मुरली को मन्दिर के अंदर भी आने नहीं देता था
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अब मुरली के बाबा ठीक होने की बजाय और बीमार हो गए और एक दिन उनका लंबी बीमारी के बाद स्वर्गवास हो गया।
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अब तो मुरली पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया... नए पुजारी ने मुरली को धक्के मारकर मन्दिर से बाहर निकाल दिया।
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मुरली को अब अपने बाबा और ठाकुर जी की मुरली की बहुत याद आने लगी।
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मन्दिर से निकलकर वह शहर जाने वाली सड़क की ओर जाने लगा... थक हार कर वह एक सड़क के किनारे पड़े पत्थर पर बैठ गया।
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सर्दी के दिन ऊपर से रात पढ़ने वाली थी मुरली का भूख और ठंड के कारण बुरा हाल हो रहा था
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रात होने के कारण उसे थोड़ा डर भी लग रहा था।
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तभी ठाकुर जी की कृपा से वहाँ से एक सज्जन पुरुष "रामपाल" की गाड़ी निकली
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इतनी ठंड और रात को एक छोटे बालक को सड़क किनारे बैठा देखकर वह गाड़ी से नीचे उतर कर आए और बालक को वहाँ बैठने का कारण पूछा।
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मुरली रोता हुआ बोला कि उसका कोई नहीं है। बाबा भगवान् के पास चले गए।
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सज्जन पुरुष को मुरली पर बहुत दया आई क्योंकि उसका अपना बेटा भी मुरली की उम्र का ही था। वह उसको अपने साथ अपने घर ले गए।
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जब घर पहुँचा तो उसकी पत्नी जो की बहुत ही घमण्डी थी, उस बालक को देखकर अपने पति से बोली यह किस को ले आए हो
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वह व्यक्ति बोला कि आज से मुरली यही रहेगा उसकी पत्नी को बहुत गुस्सा आया लेकिन पति के आगे उसकी एक ना चली।
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मुरली उसे एक आँख भी नहीं भाता था। वह मौके की तलाश में रहती कि कब मुरली को नुकसान पहुँचाए
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एक दिन वह सुबह 4:00 बजे उठी और पांव की ठोकर से मुरली को मारते हुए बोली कि उठो कब तक मुफ्त में खाता रहेगा
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मुरली हड़बड़ा कर उठा और कहता मां जी क्या हुआ तो वह बोली कि आज से बाबूजी के उठने से पहले सारा घर का काम किया कर।
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मुरली ने हाँ में सिर हिलाता हुआ सब काम करने लगा अब तो हर रोज ही मां जी पाव की ठोकर से मुरली को उठाती और काम करवाती।
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मुरली जो कि उस घर के बने हुए मन्दिर के बाहर चटाई बिछाकर सोता था।
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रामपाल की पत्नी उसको घर के मन्दिर मे नही जाने देती थी... इसका कारण यह था कि मन्दिर मे रामपाल के पूर्वजो की बनवाई चांदी की मोटी सी ठाकुर जी की मुरली पड़ी हुई थी।
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मुरली ठाकुर जी की मुरली को देख कर बहुत खुश होता, उसको तो रामपाल की पत्नी जो ठोकर मारती थी दर्द का एहसास भी नहीं होता था।
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एक दिन रामपाल हरिद्वार गंगा स्नान को जाने लगा तो मुरली को भी साथ ले गया।
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वहाँ गंगा स्नान करते हुए अचानक रामपाल का ध्यान मुरली की कमर के पास पेट पर बने पंजो के निशान को देख कर तो वह हैरान हो गया
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उसने मुरली से इसके बारे में पूछा तो वह टाल गया।
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अब रामपाल गंगा स्नान करके घर पहुँचा तो घर में ठाकुर जी की और किशोरी जी को स्नान कराने लगा...
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बाद में अपने पूर्वजों की निशानी ठाकुर जी की मुरली को भी गंगा स्नान कराने लगा..
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तभी उसका ध्यान ठाकुर जी की मुरली के मध्य भाग पर पड़ा.. वहाँ पर पांव की चोट के निशान से पंजा बना था... जैसे मुरली की कमर पर बना था...
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तो वह देख कर हैरान हो गया कि एक जैसे निशान दोनों के कैसे हो सकते हैं.. वह कुछ नहीं समझ पा रहा था।
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रात को अचानक जब उसकी नींद खुली तो वह देखता है कि उसकी पत्नी मुरली को पांव की ठोकर से उसी जगह पर मार कर उठा रही है...
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उसको अब सब समझते देर न लगी...
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रामपाल को उसी रात कोई काम था। जिस कारण रामपाल ने मुरली को रात अपने कमरे मे ही सुला लिया !
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रामपाल रात को मन्दिर मे ठाकुर जी को विश्राम करवाने के बाद दरवाजा लगाने के लिए कांच का दरवाजा मन्दिर के बाहर की और खुला रख आए !
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उसकी पत्नी रोज की तरह आई और ठोकर मार कर मुरली को उठाने लगी...
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मुरली तो वहाँ था नहीं और उसका पांव मन्दिर के बाहर दरवाजे पर लगा.. और उसका पैर खून खून हो गया.. वह दर्द से कराहने लगी।
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उसके चीखने की आवाज सुनकर रामपाल उठ गया... और उसको देखकर बोला कि यह क्या हुआ...
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उसने कहा कि यह कांच के दरवाजे की ठोकर लग गयी...
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रामपाल बोला कि जो ठोकर तुम रोज मुरली को मारती रही ठाकुर जी की मुरली उस का सारा दर्द ले लेती थी...
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जो ठाकुर जी को प्यारे होते हैं भगवान् उनकी रक्षा करते हैं...
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देखो भगवान् की मुरली भी अपने सेवक की रक्षा करती है.. उसकी पीड़ा अपने ऊपर ले लेती है..
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रामपाल की पत्नी को उसकी सजा मिल गई.. जिससे मुरली को ठोकर मारती थी आज वह पंजा डाक्टर ने काट दिया..
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रामपाल की पत्नी को अपनी भूल का एहसास हो गया था और अब वह मुरली का अपने बेटे की तरह ही ध्यान रखती थी।
जय जय श्री राधे