Wednesday, June 23, 2021

भगवान का घर

*भगवान का घर*

   कल दोपहर में मैं बैंक में गया था। वहाँ एक बुजुर्ग भी उनके काम से आये थे। वहाँ वह कुछ काम की बात ढूंढ रहे थे। मुझे लगा शायद उन्हें पेन चाहिये। इसलिये उनसे पूछा तो, वह बोले "बीमारी के कारण मेरे हाथ कांप रहे हैं और मुझे पैसे निकालने की स्लिप भरनी है। उसके लिये मैं देख रहा हूँ कि किसी की मदद मिल जाये तो अच्छा हो।"
   मैं बोला "आपको कोई हर्ज न हो तो मैं आपकी स्लिप भर दूँ?"
   अपनी परेशानी दूर होती देख उन्होंने मुझे स्लिप भरने की अनुमति दे दी। मैंने उनसे पूछकर स्लिप भर दी।
   रकम निकाल कर उन्होंने मुझसे पैसे गिनने को कहा। मैंने पैसे गिनकर उन्हें वापस कर दिये।
  मेरा और उनका काम लगभग साथ ही समाप्त हुआ तो, हम दोनों एक साथ ही बैंक से बाहर निकले तो, वह बोले "साॅरी तुम्हें थोड़ा कष्ट तो होगा। परन्तु मुझे रिक्षा करवा दोगे क्या? भरी दोपहरिया में रिक्षा मिलना कष्टकारी होता है।"
मैं बोला "मुझे भी उसी तरफ जाना है। मैं तुम्हें कार से घर छोड़ देता हूँ। चलेगा क्या?" 
वह तैयार हो गये। हम उनके घर पहुँचे। घर क्या बंगला कह सकते हो। 60' × 100' के प्लॉट पर बना हुआ। घर में उनकी वृद्ध पत्नी थी। वह थोड़ी डर गई कि इनको कुछ हो तो नहीं गया जिससे उन्हें छोड़ने एक अपरिचित व्यक्ति घर तक आया है। फिर उन्होंने पत्नी के चेहरे पर आये भावों को पढ़कर कहा कि" चिंता की कोई बात नहीं। यह मुझे छोड़ने आये हैं।"
   फिर हमारी थोड़ी बातचीत हुई। उनसे बातचीत में वह बोले "इस *भगवान के घर* में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं। हमारे बच्चे विदेश में रहते हैं।" 
   मैंने जब उन्हें *भगवान के घर* के बारे में पूछा तो कहने लगे
   "हमारे घर में *भगवान का घर* कहने की पुरानी परंपरा है। इसके पीछे की भावना है कि यह घर भगवान का है और हम उस घर में रहते हैं। लोग कहते हैं कि *घर हमारा और भगवान हमारे घर में रहते हैं।*"
   मैंने विचार किया कि, दोनों कथनों में कितना अंतर है। तदुपरांत वह बोले...
  " भगवान का घर बोला तो अपने से कोई नकारात्मक कार्य नहीं होते हमेशा सदविचारों से ओत प्रेत रहते हैं।"
 बाद में मजाकिया लहजे में बोले ...
  " लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं।"
   यह वाक्य अर्थात ही जैसे भगवान ने दिया कोई प्रसाद ही है।  उन बुजुर्ग को घर छोड़ने की बुद्धि शायद भगवान ने ही मुझे दी होगी। 
   *घर भगवान का और हम उनके घर में रहते हैं*

   यह वाक्य बहुत देर तक मेरे दिमाग में घूमता रहा। सही में कितने अलग विचार थे वे। जैसे विचार वैसा आचार। इसलिये वह उत्तम होगा ही इसमें कोई शंका नहीं,।
🙏🙏