Tuesday, December 13, 2022

इंसानियत अभी तक जिंदा है - Prerak Prasang

एक सज्जन रेलवे स्टेशन पर बैठे गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी जूते पॉलिश करने वाला एक लड़का आकर बोला~ ‘‘साहब! बूट पॉलिश ?’’

उसकी दयनीय सूरत देखकर उन्होंने अपने जूते आगे बढ़ा दिये, बोले- ‘‘लो, पर ठीक से चमकाना।’’

लड़के ने काम तो शुरू किया परंतु अन्य पॉलिशवालों की तरह उसमें स्फूर्ति नहीं थी।

वे बोले~ ‘‘कैसे ढीले-ढीले काम करते हो? जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ !’’

वह लड़का मौन रहा।

इतने में दूसरा लड़का आया। उसने इस लड़के को तुरंत अलग कर दिया और स्वयं फटाफट काम में जुट गया। पहले वाला गूँगे की तरह एक ओर खड़ा रहा। दूसरे ने जूते चमका दिये।

‘पैसे किसे देने हैं?’ इस पर विचार करते हुए उन्होंने जेब में हाथ डाला। उन्हें लगा कि ‘अब इन दोनों में पैसों के लिए झगड़ा या मारपीट होगी।’ फिर उन्होंने सोचा, ‘जिसने काम किया, उसे ही दाम मिलना चाहिए।’ इसलिए उन्होंने बाद में आनेवाले लड़के को पैसे दे दिये।

उसने पैसे ले तो लिये परंतु पहले वाले लड़के की हथेली पर रख दिये। प्रेम से उसकी पीठ थपथपायी और चल दिया।

वह आदमी विस्मित नेत्रों से देखता रहा। उसने लड़के को तुरंत वापस बुलाया और पूछा~ ‘‘यह क्या चक्कर है?’’

लड़का बोला~ ‘‘साहब! यह तीन महीने पहले चलती ट्रेन से गिर गया था। हाथ-पैर में बहुत चोटें आयी थीं। ईश्वर की कृपा से बेचारा बच गया नहीं तो इसकी वृद्धा माँ और बहनों का क्या होता,बहुत स्वाभिमानी है... भीख नहीं मांग सकता....!’’

फिर थोड़ा रुककर वह बोला ~ ‘‘साहब! यहाँ जूते पॉलिश करनेवालों का हमारा समूह है और उसमें एक देवता जैसे हम सबके प्यारे चाचाजी हैं जिन्हें सब ‘सत्संगी चाचाजी’ कहकर पुकारते हैं। वे सत्संग में जाते हैं और हमें भी सत्संग की बातें बताते रहते हैं। उन्होंने ही ये सुझाव रखा कि ‘साथियो! अब यह पहले की तरह स्फूर्ति से काम नहीं कर सकता तो क्या हुआ???

ईश्वर ने हम सबको अपने साथी के प्रति सक्रिय हित, त्याग-भावना, स्नेह, सहानुभूति और एकत्व का भाव प्रकट करने का एक अवसर दिया है।जैसे पीठ, पेट, चेहरा, हाथ, पैर भिन्न-भिन्न दिखते हुए भी हैं एक ही शरीर के अंग, ऐसे ही हम सभी शरीर से भिन्न-भिन्न दिखाई देते हुए भी हैं एक ही आत्मा! हम सब एक हैं।

स्टेशन पर रहने वाले हम सब साथियों ने मिलकर तय किया कि हम अपनी एक जोड़ी जूते पॉलिश करने की आय प्रतिदिन इसे दिया करेंगे और जरूरत पड़ने पर इसके काम में सहायता भी करेंगे।’’

जूते पॉलिश करनेवालों के दल में आपसी प्रेम, सहयोग, एकता तथा मानवता की ऐसी ऊँचाई देखकर वे सज्जन चकित रह गये औऱ खुशी से उसकी पीठ थपथपाई...औऱ सोंचने लगे शायद इंसानियत अभी तक जिंदा है.....!!

Saturday, December 10, 2022

आज का प्रेरक प्रसंग - मैले कपड़े

आज का प्रेरक प्रसंग - मैले कपड़े 

 अनुयायी के साथ प्रातः काल सैर कर रहे थे कि अचानक ही एक व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा। उसने पहले मास्टर के लिए बहुत से अपशब्द कहे, पर बावजूद इसके मास्टर मुस्कुराते हुए चलते रहे। मास्टर को ऐसा करता देख वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजों तक को अपमानित करने लगा। पर इसके बावजूद मास्टर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे। मास्टर पर अपनी बातों का कोई असर ना होते हुए देख अंततः वह व्यक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया।

उस व्यक्ति के जाते ही अनुयायी ने आश्चर्य से पुछा, “मास्टर जी आपने भला उस दुष्ट की बातों का जवाब क्यों नहीं दिया और तो और आप मुस्कुराते रहे, क्या आपको उसकी बातों से कोई कष्ट नहीं पहुंचा ?”

मास्टर जी कुछ नहीं बोले और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।

कुछ देर चलने के बाद वे मास्टर जी के कक्ष तक पहुँच गए। मास्टर जी बोले, “तुम यहीं रुको मैं अंदर से अभी आया।”

मास्टर जी कुछ देर बाद एक मैले कपड़े को लेकर बाहर आये और उसे अनुयायी को थमाते हुए बोले, “लो अपने कपड़े उतारकर इन्हें धारण कर लो ?”

कपड़ों से अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी और अनुयायी ने उन्हें हाथ में लेते ही दूर फेंक दिया।

मास्टर जी बोले, “क्या हुआ तुम इन मैले कपड़ों को नहीं ग्रहण कर सकते ना ? ठीक इसी तरह मैं भी उस व्यक्ति द्वारा फेंके हुए अपशब्दों को नहीं ग्रहण कर सकता।

*शिक्षा:-*
इतना याद रखो कि यदि तुम किसी के बिना मतलब भला-बुरा कहने पर स्वयं भी क्रोधित हो जाते हो तो इसका अर्थ है कि तुम अपने साफ़-सुथरे वस्त्रों की जगह उसके फेंके फटे-पुराने मैले कपड़ों को धारण कर रहे हो।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।

Thursday, December 1, 2022

लोगों को ऐसे समझिए

🌷 •┈✤आज का सुविचार✤┈• 🌷
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-----[ लोगों को ऐसे समझिए ]---

यदि कोई मामूली बातों में गुस्सा हो जाता है तो उसे प्यार की कमी है, यदि कोई असामान्य ढंग से खाना खा रहा है तो वह परेशान है, यदि कोई रोता नहीं है तो वह कमजोर है, यदि कोई व्यक्ति बेकार की बातों में भी हस्ता है तो वह अंदर से अकेला है, यदि किसी को छोटी बात में भी रोना अता है तो वह दिल का साफ और नेक इंसान है

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              🙏🏻 जय श्री कृष्णा 🙏🏻
                  🌞 सुप्रभात 🌞

Saturday, September 3, 2022

सतगुरू और संत के प्रेम की महिमा

सतगुरू और संत के प्रेम की महिमा

एक बार की बात है। कोई मालिक का प्यारा जो आंखों से अंधा था। चला गर्म रेत के रास्ते, नंगे पांव अपने सतगुरू से मिलने।
संत तो घट-घट की जानते हैं। उन्होेंने देखा कि कोई मेरा प्यारा आंखों से लाचार, गर्म रेत पर चल कर, लंबा रास्ता तय करके मेरे पास मुझे मिलने को आ रहा है।
संत कहां अपने प्यारे का दुख देख सकते हैं।
अपने बाकी शिश्यों से बोले के मैं अपने किसी प्यारे से मिलने जा रहा हूं।
जब सतगुरू अपने उस आंखों से लाचार प्यारे से मिलने पहुंचे, मिल कर बोले- तेरे प्यार के सदके! प्यारे मांग क्या चाहिये।

दास बोला- जी कुछ नहीं।
सतगुरू बोले- तेरा दिल बहुत बड़ा है।
अब दो चीजें मांग।
तब वो दास बोला- सच्चे पातशाह!
मेरी आंखे लौटा दो। ताकी मैं आप के दर्शन कर सकूं।

मालिक ने मेहर की।
दास को दिखाई देने लगा। (क्योंकि कहते हैं ना करता करे ना कर सके गुरू करे सो होये।)
दास ने जी भर दर्शन किये।
 तब सतगुरु ने कहा- अब दूसरी मांग मांगो।
 तो दास रो पड़ा, बोला- सच्चे पातशाह! मेरी ये आंखें वापिस ले लो।
सतगुरू बोले- प्यारे ये तुम क्या मांग रहे हो?
तब दास बोला- सच्चे पातशाह! मैं आप को देख कर कुछ और नहीं देखना चाहता।
सतगुरू जी ने दास को गले लगा लिया।
          

Sunday, January 16, 2022

जिंदगी का मज़ा खुलकर लो

जिंदगी का मज़ा खुलकर लो

मेरे एक मित्र ने अपनी बीवी की अलमारी से एक सुनहरे कलर का पेकेट निकाल कर उसमें रखी बेहद खूबसूरत सिल्क की साड़ी और उसके साथ की ज्वेलरी को एकटक देखा और कहा यह हमने 8-9 साल पहले लिया था, जब हम पहली बार न्युयार्क गए थे।

परन्तु उसने ये कभी पहनी नहीं क्योंकि वह इसे किसी खास मौके पर पहनना चाहती थी और इसलिए इसे बचा कर रखा था।

उसने उस पैकेट को भी दूसरे और कपड़ों के साथ अपनी बीवी की अर्थी के पास रख दिया |

उसने रोते हुए मेरी और देखा और कहा-- किसी भी खास मौके के लिए कभी भी कुछ भी बचा के मत रखना, जिंदगी का हर एक दिन खास मौका है, कल का कुछ भरोसा नहीं है |

उसकी उन बातों ने मेरी जिंदगी बदल दी। अब मैं किसी बात की ज्यादा चिंता नहीं करता | अब मैं अपने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताता हूँ और काम का कम टेंशन लेता हूँ | मुझे अब समझ में आ चुका है कि जिंदगी जिंदादिली से जीने का नाम है |

डर-डर के, रुक-रुक के बहुत ज्यादा विचार करके चलने में समय आगे निकल जाता है और हम पिछड़ जाते हैं।

अब मैं कुछ भी बहुत संभाल के नहीं रखता, हर एक चीज़ का बिंदास और भरपूर उपयोग जी भर के करता हूँ।*

अब मैं घर के शो केस में रखी महँगी क्रॉकरी का हर दिन उपयोग करता हूँ...

अगर मुझे पास के मार्केट में या नज़दीकी माॅल में मूवी देखने नए कपड़े पहन के जाने का मन है, तो जाता हूँ।

अपने कीमती खास परफ्यूम को विशेष मौकों के लिए संभाल कर बचा के नहीं रखता, मैं उन्हें जब मर्जी आए तब उपयोग करता हूँ |

'एक दिन''किसी दिन''कोई ख़ास मौका' जैसे शब्द अब मेरी डिक्शनरी से गुम होते जा रहे हैं..।

अगर कुछ देखने, सुनने या करने लायक है,तो मुझे उसे अभी देखना सुनना या करना होता है।

अगर मुझे पता चले कि मेरा अंतिम समय आ गया है तो क्या मैं इतनी छोटी-छोटी चीजों को भी नहीं कर पाने के लिए अफसोस करूँगा।

नहीं...

हर दिन,हर घंटा,हर मिनट,हर पल विशेष है,खास है... बहुत खास है।

प्यारे दोस्तो..!
जिंदगी का लुत्फ उठाइए, आज में जिंदगी बसर कीजिये | क्या पता कल हो न हो | वैसे भी कहते हैं न कि कल तो कभी आता ही नहीं।